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स्‍वर चिकित्‍सा


मनुष्‍य के ईश्‍वर ने शरीर में ही अनेक आश्‍चर्यजनक सम्‍पत्ति दे दी है, जिसे जान लेने पर वह आनंद की अनुभूति करता है। जन्‍म लेने के पश्‍चात् ही उसके श्‍वास प्रश्‍वासों की क्रिया आरंभ हो जाता है।

श्‍वास प्रश्‍वास का आना जाना उसकी मृत्‍यु तक चलता रहता है। स्‍वर ज्ञान से व्‍यत्ति अनेक रोगों की चिकित्‍सा स्‍वयं कर सकता है। हमारी प्राचीन पध्‍दतियों से स्‍वरोदय शास्‍त्र स्‍वर विज्ञान के माध्‍यम से व्‍यत्ति‍ अपने श्‍वासों का ज्ञान प्राप्‍त कर
सकता है।

इस शास्‍त्र का वचन है कायानगर मध्‍ये तु मारुत क्षि‍ति पालक अर्थात देहरुपी नगर में वायु राजा के समान है। प्राणवायु को निश्‍वास और प्रश्‍वास नाम से जाना जाता है। वायु ग्रहण करने का नाम नि:श्‍वास और वायु त्‍यागने का नाम प्रश्‍वास है। जीवन के जन्‍म से मृत्‍यु तक ये दोनों क्रियाएँ निरंतर चलती रहती है। कभी यह क्रियाएँ हमारे नासीका रंध्र से चला करती है। कभी यह बायी ओर से चलती है, कभी दायी ओर से तो कभी दोनों ही नासिकाओं से।

बायीं नासीका रन्‍ध्र से श्‍वास को इडा में चलाना कहा जाता है, तो दाहिनी नासिका रन्‍ध्र से श्‍वास चलने पर पिंगला से चलना कहा जाता है। जब ये दोनों ही नासिका से चलता है तो सुषुम्‍ना से चलना कहा जाता है। एक नासिका रन्‍ध्र को दबाने से हमें मालुम होता है कि दुसरे नासिका रंध्र से श्‍वास सरलता से चल रहा है तथा दुसरा बंद है। जिस नासिका से श्‍वास सरलता पूर्वक बाहर आता है उसी नासिका से वह श्‍वास चल रहा है ऐसा समझना चाहिये। किस नासिका से श्‍वास आ रहा है अभ्‍यास के द्धारा पता चलता है। रात दिन में बारह बार क्रमश: दायी और बायी नासिका से श्‍वास चलता है। किस दिन किस नासिका से श्‍वास चलता है इसका भी एक नियम है। शुक्‍लपक्ष की प्रतिपदा से तीन तीन दिन तक बारी से चन्‍द्र अर्थात बायी नासिका से तथा कृष्‍ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से तीन की बारी से सूर्य नाडी अर्थात दायी नासिका से श्‍वास प्रवाहित होता है। यह ढाई घडी तक रहता है।

जिस समय बायीं नासिका से श्‍वास चलता हो उस समय स्थिर कर्मों को करना चाहिए, जैसे अलंकार पहनना, यात्रा आश्रम या मंदीर में प्रवेश, मंदीर बनाना, जलाशय के लिये भुमी खोदना, नवीन वस्‍त्र धारण करना, विवाह पोपटि‍क कर्म, औषधी सेवन। बायी नसिका के चलते समय जब कार्य प्रारंभ होता है वह शुभ परंतु वायु, अग्रि आकाश तत्‍व के उदय से समय यह कार्य नहीं करना चाहिए। जिस समय दाहिनी नासिका से श्‍वास चलता हो उस समय कठीन कर्म करने चाहिए। जटिल विदया का अध्‍ययन, स्‍त्री संसर्ग, नौकादी विहार, उपासना, शत्रुओं को दण्‍ड, शस्‍त्राभ्‍यास गमन, पशुविक्रय, ईट, पत्‍थर, काष्‍ट तथा रत्‍न घिसना, संगीत अभ्‍यास, पहाड पर चढना, व्‍यायाम करना, औष्‍ध सेवन, लिपि लेखन, दान, क्रय-विक्रय, युध्‍द आदि। दोनों नासिका रन्‍ध्र अर्थात सुषुन्‍मा से श्‍वास चलने के समय किसी प्रकार का शुभ-अशुभ कार्य नहीं करना चाहीये। उस समय कोई भी कार्य करने से वह निष्‍पल होगा। उस समय योगभ्‍यास ध्‍यान नामस्‍मरण द्वारा ईश्‍वर चिंतन करना चाहिये। श्‍वास प्रश्‍वास की गति जानकर तत्‍वज्ञान और तिथि नक्षत्रों के अनुसार ठीक-ठीक नियम पूर्वक कार्य करने से अनेक तनावों से मुक्ति मिलती है।

श्‍वासों में गडबडी उत्‍पन्‍न होने पर अनेक रोग जन्‍म लेते है। व्‍यक्ति को व्‍यवाहार में अनेक कार्य करना होते है। स्‍वर के बदलने तक वहाँ बैठा नहीं रह सकता, इसलिये नासिका द्वारा चलने वाली वायु की गति बदलना आवश्‍यक है। अपने इच्‍छानुसार श्‍वास की गति बदलना सीख लेना चाहिये। यह क्रिया अत्‍यंत सहज है, जिस नासिका से श्‍वास चलता हो उसके विपरित दुसरी नासिका को अंगुठे से दबा देना चाहिये, और जिससे श्‍वास चल रहा हो उसी से वायु खींचनी चाहिये। फिर उसी को दबाकर दुसरी नासिका से वायु को निकालना चाहिये। कुछ देर इसी तरह करने से श्‍वास बदल जाता है। इसके अलावा जिस नाक से श्‍वास चलता हो उस करवट कुछ समय तक लेटे रहने से भी श्‍वास बदलता है। ज्‍वर (ताप) होने पर अथवा उसकी आशंका होने पर जिस नासिका से श्‍वास चल रहा हो उसे बंद कर लें। जब तक ज्‍वर न उतरे उस नासिका को बंद ही रखे। ज्‍वर के समय मन ही मन चाँदी के समान श्‍वेत वर्ण का ध्‍यान करना चाहिये, जिससे बहुत जल्‍द ज्‍वर उतरता है। सिन्‍दुर वार की जड रोगी के हाथों में बांधने से भी ज्‍वर कम होता है। आंतडियाँ ज्‍वर में भी यह चिकित्‍सा बहुत लाभदायक है। श्‍वेत, आपजिता अथवा पलाश के पत्‍ते हाथों से मलकर एक पोटली में बांध ले तथा उसको उस दिन सबेरे से ही सूँघना प्रारम्‍भ करे इससे भी ज्‍वर समाप्‍त होता है।

सिर दर्द होने पर दोनों हाथों की कोहनियों को ऊपर किसी धोती के किनारों से बांध ले, इससे पाँच सात मिनिट में ही सिरदर्द समाप्‍त हो जाता है बाँहे कसकर बांधना चाहिये। सिरदर्द समाप्‍त होने पर ही खोल देना चाहिये। जिस व्‍यक्ति को सिर में दर्द हो, उसे प्रात:काल उठते ही नासिका रन्‍ध्रो से शीतल जल पीना चाहिये। इससे मस्तिष्‍क भी शीतल रहेगा और सिर भारी नहीं होगा। यह विधि बहुत ही सरल है अत्‍यंत सावधानी से धीरे धीरे जल नाक से भरे। ए‍क पात्र में शीतल जल लें नाक डुबाकर धीरे धीरे गले तक जल को खीचे। अभ्‍यास से शीघ्र ही यह क्रिया सभंव होगी।

स्‍वर चिकित्‍सा के बारे में उपयोगी शरीर में किसी भी प्रकार की वेदना अथवा फोडा घाव, बीमारी का लक्षण दिखायी दे तो जिस नासिका रंध्र से श्‍वास चल रही है, उसे बदल लेना चाहिये। इससे शरीर शीघ्र स्‍वस्‍थ होगा। चलने पर या परिश्रम करने पर श्‍रीर में थकान अनुभव हो तो दाहिने करवट लेट जाना चाहिये उससे थोडे समय में ही थकावट दुर हो जाती है। यदि बहुत धुप में जाना हो तो भी दोनों कानों को बंद कर ले जिससे धुप का स्‍पर्श कानों को नहीं होगा और विपरित गर्मी से शरीर बचा रहेगा। प्रतिदिन आधा घंटा पदमासन में बैठकर दॉंतों की जड में जीभ का अग्रभाग रखने से समस्‍थ व्‍याधियॉं नष्‍ट हो जाती है। ललाट पर पूर्ण चन्‍द्र के ज्‍योती के समान ध्‍यान करने से कुष्‍ट आदी रोगों का निवारण होता है। सर्वदा दृष्‍टी के आगे पीतवर्ण उज्‍ज्‍वल ज्‍योती का ध्‍यान करने से अनेक रोग समाप्‍त होते है। सिर गर्म होने पर मस्तिष्‍क में पूर्ण चन्‍द्र का ध्‍यान करने से लाभ होता है। प्‍यास से व्‍याकुल होने पर यह ध्‍यान करें कि जीभ के उपर कोई खटटी चीज रखी है। शरीर गर्म होने पर ठंडी चीज का ध्‍यान करे तथा शरीर ठण्‍डा होने पर गर्म चीज काध्‍यान करे।

प्रात: जागने पर जिस नासिका से श्‍वास चलता हो उस ओर का हाथ मुँह पर रख कर शय्या से उठने पर मनोकामना सिध्‍द होती है। जो दिन में बायी ना‍सिका से तथा रात्रि में दाहिनी नासिका से श्‍वास लेता है उसके शरीर में कोई पीडा़ नहीं होती। आलस्‍य दुर होता है और दिन पर दिन चेतना बढ़ती है।
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